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Monday, November 23, 2020

कांग्रेस हाई कमान को कोई नहीं बता पा रहा है , उसके सिकुड़ते जाने का असली कारण !


कांग्रेस के पास छोटे-बड़े शुभचिंतकों, हितचिंतकों, विचारकों, समर्थक पत्रकारों -बुद्धिजीवियों व विश्लेषणकत्र्ताओं की आज भी कोई कमी नहीं।
एक मामले में मैं भी शुभचिंतक ही हूं।
पर कांग्रेस का नहीं बल्कि स्वस्थ लोकतंत्र का।
स्वस्थ व जीवंत लोकतंत्र के लिए स्वस्थ व
मजबूत विपक्ष भी चाहिए।
आज केंद्र में सत्तापक्ष तो ठीक है,पर
अपने ही कारणों से प्रतिपक्ष न तो स्वस्थ और न ही मजबूत।
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बिहार चुनाव के बाद कांग्रेस की दशा-दिशा पर अनेक विश्लेषणकत्र्ताओं के
‘गरिष्ठ’ विचार सुने और पढ़े।
मेरी समझ से उनमें से किसी ने भी कांग्रेस के पराभव के असली कारण नहीं बताए।
मेरा मानना रहा है कि दो मुख्य व असली कारण हैं।
एक - कांग्रेस की केंद्र व कई राज्य सरकारों व उसके अनेक नेताओं के भीषण भ्रष्टाचार व घोटालों -महा घोटालों की भरमार।
प्रथम परिवार के साथ-साथ कांग्रेस नेताओं की एक लंबी सूची है जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप में मुकदमे चल रहे हैं।
दूसरा कारण है - इधर कांग्रेस ने लगातार जेहादी तत्वों के तुष्टिकरण-बचाव-बढ़ावा के लिए काम किए।
यदि सामान्य अल्पसंख्यकों के भले के लिए काम किए होते तो
इस देश के अन्य विवेकशील लोगों को नहीं अखरता।
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2014 के लोक सभा चुनाव के बाद सोनिया गांधी ने पूर्व रक्षा मंत्री ए.के.एंटोनी से कहा था कि आप चुनाव में कांग्रेस की हार के कारणों पर रपट बनाइए।
एंटोनी ने रपट बनाई।
सोनिया जी को दे दिया।
उसमें अन्य कारणों के साथ- साथ यह भी लिखा गया था कि ‘‘मतदाताओं को, हमारी पार्टी अल्पसंख्यक की तरफ झुकी हुई लगी जिसका हमें नुकसान हुआ।’’
बेचारे एंटोनी साहब यह तो लिख नहीं सकते थे कि भ्रष्टाचार,घोटालों-महा घोटालों के कारण भी पार्टी को नुकसान हुआ !!
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कांग्रेस ने एंटानी के इशारों को भी नहीं समझा।
या समझना नहीं चाहा।
अधिकतर मतदाताओं ने जब दो प्रमुख दलों के बीच अंतर देखा तो उसने उसके अनुसार मतदान किए।और कर रहे हैं।
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यदि कांग्रेस सचमुच अपने कायाकल्प के उपाय करना चाहती है तो वह अब कुछ विदेशी राजनीतिक विश्लेषकों को यहां बुलाए।
पराभव का कारण की उनसे पड़ताल करवाए।
या फिर विदेशी अखबारों के दिल्ली स्थित उन संवाददाताओं से पूछे जो अपेक्षाकृत निष्पक्ष हों।
निश्चित तौर पर वैसे लोग वही कारण बताएंगे जो दो मुख्य कारण मैंने ऊपर लिखे हैं।
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तीसरा कारण जरूर कल्पनाविहीन , आलसी और पार्ट टाइमर नेतृत्व है।
पर, पहले के दो कारण मूल में है।
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अनेक कांग्रेसी आज कह रहे हैं कि कांग्रेस प्रखंड से राष्ट्रीय स्तर तक संगठनात्मक चुनाव करवा दे तो संगठन मजबूत हो जाएगा।
चमत्कार हो जाएगा।
अरे भई,1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद इंदिरा गांधी की अपेक्षा ‘संगठन कांग्रेस’ के पास बेहतर संगठन था।
फिर भी इंदिरा गांधी ने 1971 में लोस चुनाव जीत लिया।
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2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार केंद्र में सत्ता में आए थे तो मैंने किसी से कहा था कि मोदी जी को चाहिए कि वे अपनी जीत का श्रेय सोनिया गांधी -मनमोहन सिंह को देते हुए उन्हें अपनी मालाएं पहना दें।
आज भी मैं यही कहूंगा।
दरअसल कुछ व्यक्ति या संस्थान कभी -कभी खुद को बेहतर बनाने की क्षमता पूर्णतः खो देते हैं।
क्या कांग्रेस के साथ भी आज यही हो रहा है ?

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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