चाय पर चर्चा करने बैंड-बाजा के साथ घोड़े पर सवार होकर पहुंचे भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष - Newztezz

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Thursday, October 29, 2020

चाय पर चर्चा करने बैंड-बाजा के साथ घोड़े पर सवार होकर पहुंचे भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष


कोलकाताः
 हाल ही में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कोरोना को मात दी है। कोरोना को मात देने के बाद वह गुरुवार को पहली बार ‘चाय पर चर्चा’ के लिए निकले। दिलीप घोष के गुरुवार की ‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम को बीजेपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने विशेष बना दिया।

दरअसल ‘चाय पर चर्चा’ के लिए गुरुवार को दिलीप घोष बैंड-बाजा के साथ घोड़े पर सवार होकर पहुंचे। इसके लिए पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बड़ी व्यवस्था की थी। दरअसल जर्दा बगान से एक जुलुस निकाला गया। एक घोड़े की सवारी और बैंड-बाजा की व्यवस्था की गई थी। उसी घोड़े पर सवार होकर दिलीप घोष ‘चाय पर चर्चा’ के लिए पहुंचे।

‘चाय पर चर्चा’ करने पहुंचे दिलीप घोष ने ऐलान किया कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो पार्टी के जितने भी कार्यकर्ताओं के खिलाफ राजनीतिक मुकदमा दायर किया गया है उसे वापस लिया जाएगा। घोष ने कहा कि जिस तरह सीपीएम अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या करके भावनात्मक राजनीति करती थी, उसी प्रकार तृणमूल भी अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं के नाम पर मामला दर्ज कर रखा है ताकि कोई भी डर से पार्टी न छोड़े।

सुब्रत चट्टोपाध्याय को पद से हटाने के बारे में दिलीप घोष ने कहा कि हम संगठन करने आए हैं। पार्टी जो ठीक करती है जो दायित्व जिसे देती है हम उसे ही मानते हैं। सुब्रत दा ने 5 से 6 वर्षों तक बीजेपी के लिए काम किया है। उन्हें कोई और जिम्मेदारी दी जा सकती है।

बागनान में बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या को लेकर दिलीप घोष ने कहा कि जिस कार्यकर्ता को गोली मारी गई थी वह बीते कल जिंदगी से जंग हार गया। इसी प्रकार मेदनीपुर और उत्तर 24 परगना में भी बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या की गई है। पूजा में भी हत्या की जा रही है। हमें लगता है कि यह जानबूझ कर किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो सभी दलों के नेताओं के मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक मुकदमे आज लाखों में हैं। अधिकतर झूठे। जो लोग यहां राजनीति कर रहे हैं वे भय में हैं।

दिलीप घोष ने दावा किया कि यहां तक टीएमसी के भी कई नेता हैं जिनपर झूठे मामले किए गए हैं ताकी वे पार्टी छोड़कर न जाएं। ऐसे में वे तृणमूल में ही रहने को मजबूर हैं। इसलिए हम कह रहे हैं कि सत्ता में आने पर राजनीतिक मामले वापस लिए जाएंगे चाहे वह किसी भी पार्टी के हों।

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