वर्षो से मेरी अवधारणा रही कि इंग्लिश जुबान तथा रोमन लिखावट के सामने हिंदी और नागरी लिपि हर प्रकार से त्रुटिहीन और परिपूर्ण हैं। देखें प्रमाण स्वरुप भारत के संविधान की प्रस्तावना पर प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने (इंडियन एक्सप्रेस, 22 अक्टूबर 2020, पेज 7 कालम 8) में लिखा है कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में समानता और स्वतंत्रता के साथ अग्रेंजी शब्द फ्रेटर्निटी (Fraternity) लिखा गया हैं जो अधूरे अर्थवाला है। ये पुल्लिंग वाला शब्द हैं। स्त्री इसमें समाहित नहीं हैं। इसके शाब्दिक अर्थ हैं भाई-चारा। बहनों के लिए शब्द होगा “Sorority”।
संविधान की नागरी लिपि में लिखी प्रस्तावना में शब्द “बंधुत्व” ज्यादा समावेशी हैं।
राजमोहन जी ने अपने समर्थन में लेखक हर्ष मान्दर का उल्लेख भी किया है। हालांकि इन दोनो की स्व-भाषा हिंदी नही हैं।
तो अब शब्द फ्रेटर्निटी का सही विकल्प अथवा शब्द “बन्धुत्व” का अंग्रेजी पर्याय खोजना होगा। सवाल हैं कि क्या भारत के संविधान के 105वें संशोधन की अनिवार्यता अब आन पड़ेगी ?
तो मेरा अभिमत है कि अंग्रेजी से हिंदी ज्यादा वस्तुनिष्ट, उपयुक्त तथा अर्थपूर्ण हैं। खुद हर्ष मान्दर जो अगेंजी के ज्ञाता हैं ने लिखा हैं हिंन्दी शब्द “बन्धुत्व” बेहतर मायनेवाला होता है।
हालांकि मेरा हिन्दी का पक्षधर होना मेरे मित्रों के लिए कुछ अचम्भा उपजाता हैं। कारण कई हैं। मेरी मातृभाषा हिन्दी नहीं हैं। तेलुगु हैं। पत्रकारिता में चार दशक मैने अंग्रेजी भाषाई अखबारों (Times of India) में गुजारा है। सभी छ महाव्दीपों के इक्यावन राष्ट्रों में आयोजित विविध मीडिया सम्मेलनों में अग्रेजी में ही मैंने संम्बोधन किया हैं। इन सब के बाद भी मेरी अवधारणा दृढ़तर हो गई हैं कि हिन्दी, दोंनो लिखने और बोलने में, वैज्ञानिक हैं। सम्भव हैं कि मै लखनऊ विश्वविद्यालय के “अग्रेंजी-हटाओ आंदोलन” का सक्रिय भागीदार रहा।
यें शब्द “फ्रेटर्निटी” भारतीय राष्ट्रीय काग्रेंस के 1931 में कराची में हुए सम्मेलन में पारित मौलिक अधिकार वाले प्रस्ताव में नहीं था। इसे 1948 में डाँ भीमराव अम्बेडकर ने लिबर्टी और इक्वालिटी शब्दों के साथ जोड़ दिया था। इसका हिन्दी अनुवाद “बन्धुत्व” किया गया।
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के अग्रेंजी- हिंन्दी शब्दकोष, 2012, में फ्रेटर्निटी का अर्थ “भ्रातृ-भाव” दिया हैं (भगिनी का जिक्र नहीं हैं) |
काशी नागरी प्रचारिणी सभा के हिन्दी शब्द सागर, सातवा भाग, पृष्ट 3334 में “बन्धुत्व” की समावेशी परिभाषा हुई हैं।
यू आज भी अग्रेंजी और हिंन्दी भाषाओं में पुल्लिंग शब्दों का उपयोग एक साथ में होता हैं और यह मान लिया जाता है कि इन शब्दो में स्त्रीलिंग भी शामिल हैं। आधुनिक सन्दर्भ में ऐसी मान्यता स्वीकार्य नही हैं। कभी “युवक सभा” पर आपत्ति नहीं होती थी। किन्तु अब उसे “युवजन सभा” कहना ही पड़ेगा। क्योंकि युवतियां युवक से भिन्न होंती हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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