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Monday, October 28, 2024

यहां हिंदू नाम के आगे लिखते हैं खां: बिहार के सहरसा में अनूठी परंपरा,‌श्रीकृष्ण की मूर्ति के लिए मुस्लिम लाते हैं मिट्टी

 


Unique Village of Bihar: आज तक आपने मुस्लिम समुदाय के नाम के पीछे ही खां सरनेम लगा हुआ देखा या सुना होगा. लेकिन बिहार में एक ऐसा गांव है जहां सबसे ज्यादा ब्राह्मण रहते हैं और वे अपने नाम के साथ खां सरनेम लगाते हैं.

बिहार के इस गांव में करीब 80 प्रतिशत आबादी ब्राह्मणों की है. इसके बाद भी ये लोग झा और ठाकुर के साथ सरनेम में खां लगाते हैं. आप को जानकार हैरानी होगी की इस गांव में इतनी संख्या में हर गोत्र के ब्राह्मण हैं कि शादी भी यही हो जाती हैं.

यह गांव सहरसा जिला मुख्यालय से 8KM दूर है. जिसका नाम बनगांव है. जो बिहार में सबसे ज्यादा ब्राह्मणों की आबादी वाले गांव में से एक है.

भोलेनाथ हो या शंकर सब लगाते हैं खां 

इस बनगांव में किसी का नाम भोलेनाथ हो या शंकर सभी लोग अपने नाम के बाद खां सरनेम लगाते हैं. इस गांव में लगभग 15 से 20 हजार हिन्दू अपने नाम के पीछे खां सरनेम लगाते हैं. ये लोग किसी भी बाहर शहरों में जातें हैं तो लोग इनका पूरा नाम सुनकर चौंक जाते हैं.

इस गांव के लोगों का मानना है कि उनके पूर्वजों ने मुगलकाल में अपने नाम के साथ खां लगाना शुरू किया था. इसके पीछे कई कहानियां हैं लेकिन सही वजह किसी को नहीं पता है.

इतना ही नहीं यहां कई पीढ़ियों से होली-दिवाली, जन्माष्टमी जैसे हिंदू त्योहारों के मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल होते हैं. गांव में 133 साल से हर रविवार धर्म सभा आयोजित होती है, जिसमें सभी धर्मों के लोग हिस्सा लेते हैं.

गांव में ही हो जाती है शादी 

इस गांव में कई प्रकार के गोत्र और मूल के ब्राह्मण रहते हैं. इसलिए गांव में ही शादी हो जाती है. गांव में ही इतने गोत्र हैं कि किसी भी लड़की या लड़के के लिए आसानी से रिश्ता मिल जाता है.

गांव के लोग बताते हैं बेटी के कुल से पांच पीढ़ी छोड़कर और पिता के पक्ष से 7 पीढ़ी छोड़कर शादी हो जाती है. इसलिए यहां शादी होने में आसानी होती है. उन्होंने बताया कि ये एक-दो वर्षों से नहीं कई वर्षों से यहां गांव में शादियां होते आ रही हैं.

श्रीकृष्ण की मूर्ति के लिए मुस्लिम लाते हैं मिट्टी 

श्री कृष्ण की मूर्ति के लिए मिट्टी मुस्लिम लाते हैं. हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी मुस्लिम परिवार के ही लोग लेकर आते हैं. वहीं, बनगांव में अलग-अलग गोत्र के लोग एक ही गांव में रहते हैं. इसलिए बेटे-बेटियों की शादी गांव में ही कर देते हैं.

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